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मेरी उम्र अठाईस साल है और मैं दिल्ली में एक स्कूल में टीचर हूँ। मेरे पति का एक्स्पोर्ट का कारोबार है और हमारी अभी कोई औलाद नहीं है। मेरा फिगर ३६/२७/३८ है और कद पाँच फुट चार इंच है। मेरा रंग गोरा है, हालाँकि दूध जैसा सफ़ेद तो नहीं लेकिन काफी गोरी हूँ मैं। मुझे अपने जिस्म की नुमाईश करने की बेहद शौक है। दूसरों को अपने जिस्म के जलवे दिखाने का मैं कोई मौका नहीं छोड़ती क्योंकि मुझे अपने फिगर पर बेहद फख्र है। जिस्म की नुमाईश करते वक्त मैं सामने वाले की उम्र का लिहाज़ नहीं करती क्योंकि मेरा ये मानना है कि मर्द तो मर्द ही होता है फिर उसकी उम्र कितनी भी हो। कोई भी मर्द किसी हसीन औरत के जिस्म की झलक पाने का मौका नहीं छोड़ता फिर चाहे वो उसकी रिश्तेदार ही क्यों ना हो। चौदह से साठ साल तक की उम्र वालों को मैंने अपने जिस्म को गंदी नज़रों से ताकते हुए देखा है।
मैंने देखा है कि सभी मर्द खासतौर से मेरी गाँड को सबसे ज्यादा घूरते हैं। मेरे पति और दूसरे कुछ लोगों नेभी मुझे कईं दफा बताया है कि मेरी गाँड मेरे जिस्म का सबसे हसीन हिस्सा है।मैं भी ये बात मानती हूँ क्योंकि मैं जब भी चूड़ीदार सलवार-कमीज़ या टाईट जींस के साथ हाई हील वाले सैंडल पहन कर मार्किट या भीड़ से भरी बस या ट्रेन में जाती हूँ तो लोगों की नज़रें मेरी गाँड पर ही चिपक जाती हैं। कईं लोग तो मेरे चूतड़ों पर चिकोटी काटने या कईं बार मेरी गाँड पे हाथ फेर कर सहलाने से भी बाज़ नहीं आते। लोग सिर्फ मेरी गाँड को ही तवज्जो नहीं देते बल्कि मेरे मम्मों को भी छूने की कोशिश करते हैं। कईं दफा, खासतौर से जब मैं भीड़ वाली बस में मौजूद होती हूँ तो मेरे आसपास खड़े मर्द अपनी कुहनियों या कंधों से मेरे मम्मों को दबाने की कोशिश करते हैं। इसके अलावा जिस स्कूल में मैं पढ़ाती हूँ वहाँ भी अपने जिस्म के जलवे दिखाने की अपनी इस आदत से बाज़ नहीं आती और जब स्कूल के लड़के भी गंदी नज़रों से कसमसते हुए मुझे देखते हैं तो मुझे बेहद मज़ा आता है।
मामूली छेड़छाड़ का मैं कभी कोई एतराज़ नहीं करती लेकिन अगर मेरी मरज़ी के बगैर कभी कोई जबरदस्ती हद पार करने की कोशिश करे तो उसकी अकल ठिकाने लगा देती हूँ। ये सब पब्लिक में होने की वजह से ये बिल्कुल मुश्किल नहीं होता। पहले तो मैं गुस्से से घूरती हूँ और अगर कोई शख्स फिर भी बाज़ ना आये तो शोर मचा देती हूँ और आसपास के लोग फिर उसकी खबर ले लेते हैं। इसका ये मतलब नहीं है कि मैं कभी भी हद पार नहीं करती क्योंकि कभी-कभार मेरा दिल हो तो बात चुदाई तक भी पहूँच जाती है। अब तक मैंने कईं अजनबियों के लण्ड अपनी चूत में लिये हैं। महीने में एक-दो बार तो ऐसा हो ही जाता है। अजनबियों से चुदवाने का ये सिलसिला दो साल पहले ही शुरू हुआ था।
अब मैं वो किस्सा बयान करने जा रही हूँ जब मैंने पहली बार बहक कर अपने जिस्म की नुमाईश करने और थोड़ी-बहुत छेड़छाड़ की खुद की बनायी हद पार की और अजनबियों के साथ चुदाई में शामिल हो गयी। मेरा यकीन मानिये, मुझे इस चुदाई में बेहद मज़ा आया जबकि
ये वाकया एक गरीब टाँगेवाले के साथ हुआ था। उस वाकये के बाद ही मेरी हिम्मत खुल गयी और मैं कभी-कभार हद पार करते हुए अजनबियों से चुदवाने लगी।
हुआ ये कि एक बार मुझे दूर की रिश्तेदार की शादी में शामिल होने के लिये हमारे गाँव जाना पड़ा। मैं वहाँ अपने अपनी सास और चचेरे देवर के साथ जा रही थी। मेरे पति काम के सिलसिले में टूर पे गये हुए थे और वहीं से सीधे शदी में पहुँचने वाले थे। मेरा चचेरा देवर जो हमारे साथ जा रहा था वो सोलह साल का बच्चा था। अब आप सोचेंगे कि सोलह साल का लड़का तो बच्चा नहीं होता लेकिन अकल से आठ-नौ साल के बच्चे जैसा ही था।गाँव में पला बड़ा हुआ था और जिस्मानी रिश्तों से बिल्कुल अंजान था। मैं ये बात यकीन से इसलिये कह सकती हूँ कि मैं कईं बार अपने हुस्न और जिस्म की नुमाईश से उसे फुसलाने की नाकाम कोशिश कर चुकी थी। आखिर में मैं इस नतीजे पर पहुँची कि इस बेवकूफ गधे को फुसलाने में वक्त ज़ाया करने का कोई फायदा नहीं। मेरी सास की उम्र साठ साल है और उनकी नज़र कमज़ोर है।उन्हें रात के वक्त दिखायी नहीं देता। हम ट्रेन से अपने गाँव जा रहे थे और ट्रेन स्टेशन पर रात को तीन घंटे देर से सवा नौ बजे पहुँची जबकि पहुँचने का सही वक्त शाम के साढ़े छः का था।
जब हम स्टेशन पर उतरे तो ये जान कर हैरानी हुई कि स्टेशन पे हमें लेने कोई नहीं आया था। ये छोटा सा स्टेशन था और गाँव वहाँ से थोड़ा दूर था। मैंने फोन करने की कोशिश की लेकिन वहाँ पर नेटवर्क भी नहीं था। हमने पंद्रह मिनट इंतज़ार किया और सोचा कि रात बहुत हो चुकी है और हमें खुद ही गाँव चलना चाहिये। स्टेशन के बाहर आकर हम गाँव जाने का कोई ज़रिया देखने लगे। रात बहुत हो चुकी थी इसलिये कोई बस या आटो-रिक्शॉ वहाँ मौजूद नहीं था। बस कुछ टाँगे खड़े थे वहाँ पर। और कोई चारा ना देख कर मैंने टाँगे वालों से हमें गाँव ले चलने के लिये पूछना शुरू किया लेकिन कोई भी तैयार नहीं हुआ क्योंकि हमारा गाँव वहाँ से करीब बीस किलोमीटर दूर है।
जब हम स्टेशन पर उतरे तो ये जान कर हैरानी हुई कि स्टेशन पे हमें लेने कोई नहीं आया था। ये छोटा सा स्टेशन था और गाँव वहाँ से थोड़ा दूर था। मैंने फोन करने की कोशिश की लेकिन वहाँ पर नेटवर्क भी नहीं था। हमने पंद्रह मिनट इंतज़ार किया और सोचा कि रात बहुत हो चुकी है और हमें खुद ही गाँव चलना चाहिये। स्टेशन के बाहर आकर हम गाँव जाने का कोई ज़रिया देखने लगे। रात बहुत हो चुकी थी इसलिये कोई बस या आटो-रिक्शॉ वहाँ मौजूद नहीं था। बस कुछ टाँगे खड़े थे वहाँ पर। और कोई चारा ना देख कर मैंने टाँगे वालों से हमें गाँव ले चलने के लिये पूछना शुरू किया लेकिन कोई भी तैयार नहीं हुआ क्योंकि हमारा गाँव वहाँ से करीब बीस किलोमीटर दूर है।
फिर मुझे महसूस हुआ कि एक दर्मियानी उम्र का टाँगेवाला दूर कोने में खड़ा लगातार मुझे घूर रहा है। अचानक मुझे एक ख्याल आया और मैंने इस मौके का पूरा फायदा उठाने का सोचा।मैं उस टाँगे वाले के करीब गयी और उससे हमें गाँव ले चलने की गुज़ारिश लेकिन उसने ये कहते हुए मना कर दिया कि “मेमसाब! अभी रात बहुत हो गयी है… आपके गाँव जायेंगे तो हमारे तो रात भर का धंधा खराब हो जायेगा!”
मैंने फिर उससे इल्तज़ा की, “प्लीज़ हमको हमारे गाँव छोड़ दो ना – देखो हम अकेली लेडीज़ लोग हैं, कैसे घर जायेंगे… तुम हमें घर छोड़ दो… हम तुम्हें थोड़े ज्यादा पैसे दे देंगे!”
“अरे! पर हमारा तो सारा धंधा ही खराब हो जायेगा ना मेमसाब! आपको छोड़ कर तो वापस क्या आयेंगे – तब तक सब ट्रेन छूट जायेगी!”
मैंने नोटिस किया कि मुझसे बात करते वक्त वो बेशर्मी से मेरे मम्मों को देख रहा था जिनका कटाव मेरे गहरे गले के ब्लाऊज़ में से साफ नज़र आ रहा था। उसे फुसलाने के लिये मैंने अपनी चुनरी सम्भालने का नाटक करते हुए चुनरी इस तरह एडजस्ट कर ली कि अब वो मेरे बड़े मम्मे का और भी साफ-साफ दीदार कर सके। फिर मैंने बेहद कातिलाना मुस्कुराहट के साथ अपनी नज़रें नीचे करके अपने मम्मों को देखते हुए उससे फिर एक बार गुज़ारिश की, “प्लीज़ हमें ले चलो – तुम्हें अच्छा इनाम मिल जायेगा!”और फिर मैंने बेहद लुच्ची हरकत की। उसकी टाँगों के बीच लंड की तरफ सीधे देखते हुए मैंने एक हाथ से अपना बाँया मम्मा दबा दिया और दूसरे हाथ से अपने लहंगे के ऊपर से ही अपनी चूत को मसल दिया। मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था।
हम जहाँ खड़े थे वहाँ थोड़ा अंधेरा था, इसलिये किसी से पकड़े जाने का डर नहीं था। मैंने उसे इतना खुलकर साफ इशारा दे दिया था जितना कि कोई औरत किसी अजनबी को दे सकती है। वो भी मेरा इशारा समझ गया और हमें ले जाने के लिये राज़ी होते हुए बोला, “अच्छा मेमसाहब! आप कहती हैं तो चलता हूँ पर इनाम पुरा लूँगा!”ये कहते हुए उसकी आँखें मेरे मम्मों पर और लहंगे में चूत वाले हिस्से पर ही जमी थीं जैसे कि कह रहा हो कि मेरी चूत भी लेगा।
हम जहाँ खड़े थे वहाँ थोड़ा अंधेरा था, इसलिये किसी से पकड़े जाने का डर नहीं था। मैंने उसे इतना खुलकर साफ इशारा दे दिया था जितना कि कोई औरत किसी अजनबी को दे सकती है। वो भी मेरा इशारा समझ गया और हमें ले जाने के लिये राज़ी होते हुए बोला, “अच्छा मेमसाहब! आप कहती हैं तो चलता हूँ पर इनाम पुरा लूँगा!”ये कहते हुए उसकी आँखें मेरे मम्मों पर और लहंगे में चूत वाले हिस्से पर ही जमी थीं जैसे कि कह रहा हो कि मेरी चूत भी लेगा।
इतना बेहतरीन मौका देने के लिये मैंने दिल ही दिल में भगवान का शुक्रिया अदा किया क्योंकि हमारा ट्रेन का सफ़र बहुत ही उबाऊ और बेरंग था। हम ए-सी फर्स्ट क्लास में सफर कर रहे थे इसलिये किसी भी मस्ती-मज़े और छेड़-छाड़ का कोई ज़रिया नहीं था। खैर हम लोग टाँगे पर बैठे। मैं और मेरी सास पीछे वाली सीट पर बैठे और मेरा देवर आगे वाली सीट पर टाँगे वाले की बगल में बैठा। करीब पंद्रह मिनट के बाद हम पक्की सड़क से एक सुनसान कच्ची सड़क पर मुड़े। इस सड़क पे कोई रोशनी नहीं थी और ऐसा महसूस हो रहा था जैसे जंगल में से गुज़र रहे हों। कोई और गाड़ी उस सड़क पर नज़र नहीं आ रही थी। मेरी सास तो टाँगे पर बैठते ही सो गयी थी और अब खर्राटे मार रही थी। यही हाल मेरे देवर का भी था जो टाँगे का साईड का डंडा पकड़े सोया हुआ था।
ठीक ऐसे वक्त पर टाँगेवाले ने टाँगा रोक दिया और बोला, “मेमसाब! आप आगे आके बैठिये, क्योंकि पीछे की तरफ लोड ज्यादा हो गया है घोड़ा बेचारा इतना लोड कैसे खींचेगा, और इस बच्चे को भी पीछे आराम से बिठा दीजिये!”
मैं फौरन समझ गयी कि उसका असली इरादा क्या है लेकिन फिर भी अंजान बनते हुए बोली, “नहीं रहने दो ना ऐसे ही ठीक है!”
“ऐसे नहीं चलेगा… घोड़ा तो आपके घाँव तक पहुँचने से पहले ही मर जायेगा… आइये – आप आगे बैठिये!”
मैंने देखा कि मेरी सास अभी भी खर्राटे मार रही थी और मेरे देवर का भी यही हाल था। मजबूरी का नाटक करते हुए मैं टाँगे से उतरी और आगे जा कर अपने देवर को जगाया। “विनोद उठो! जाकर पीछे बैठो… मैं इधर आगे बैठुँगी!”
विनोद बहुत ही सुस्त सा नींद में वहाँ से उठा और बिना कुछ बोले पीछे वाली सीट पर जा कर बैठ गया और मैं आगे की सीट पर टाँगेवाले की बगल में बैठ गयी। टाँगा फिर धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा। पंद्रह-बीस मिनट के बाद मैंने देखा कि विनोद फिर सो गया है और इस बार उसने अपना सिर मेरी सास की गोद में रखा हुआ था। अब अगर वो अचानक जाग भी जाता तो हमें आगे देख नहीं सकता था। अब मैं बहुत खुश थी क्योंकि उस ठरकी टाँगेवाले को तड़पाने और लुभाने का और अब तक के बेरंग सफ़र में कुछ मज़ा लेने का ये बेहतरीन मौका था।
वैसे तो मैं हमेशा सलवार-कमीज़ या जींस-टॉप ही पहनती हूँ लेकिन हम शादी में जा रहे थे तो मैंने डिज़ायनर लहंगा-चोली पहना हुआ था और चोली के ऊपर झिनी सी चुनरी थी। नेट के कपड़े का झिना सा लहंगा था इसलिये उसके नीचे स्लिप (पेटीकोट) भी पहना हुआ था। एहतियात के तौर पे सफर के दौरान ज़ेवर नहीं पहने थे लेकिन पूरा मेक-अप किया हुआ था और पैरों में चार इंच ऊँची पेंसिल हील वाले फैंसी सैंडल पहने हुए थे। मैंने हमेशा महसूस किया है कि हाई हील के सैंडल पहनने से मेरा फिगर और ज्यादा दिलकश लगता है और मेरी कसी हुई गोल-गोल गाँड इमत्याज़ी तौर पे ऊपर निकल आती है।
मैंने फिर अपनी चुनरी को इस तरह एडजस्ट किया ताकि चोली में कसा मेरा एक मम्मा नज़र आये और फिर टाँगेवाले की तरफ देखते हुए मैंने पूछा, “अरे तुम्हारा घोड़ा तो बहुत धीरे-धीरे चल रहा है! लगता है कि जैसे इसमें जान ही नहीं है!”
मैंने फिर अपनी चुनरी को इस तरह एडजस्ट किया ताकि चोली में कसा मेरा एक मम्मा नज़र आये और फिर टाँगेवाले की तरफ देखते हुए मैंने पूछा, “अरे तुम्हारा घोड़ा तो बहुत धीरे-धीरे चल रहा है! लगता है कि जैसे इसमें जान ही नहीं है!”
बेहयाई से मेरे मम्मों को देखते हुए टाँगेवाला बोला, “अरे मेमसाब जी! अभी आपने मेरा घोड़ा देखा ही किधर है! जब उसे देखोगी तो घबरा कर अपना दिल थाम लोगी!”
उसे और शह देने के मकसद से मैंने अपनी चोली का एक हुक खोल दिया। चोली में तीन ही हुक थे और बैकलेस चोली होने की वजह से मैंने नीचे ब्रा भी नहीं पहनी हुई थी। एक तो मेरी चोली पहले से ही बेहद लो-कट थी और अब हुक खोलने से मेरे मम्मों की घाटी का काफी हिस्सा टाँगेवाले की नज़रों के सामने नुमाया हो गया। टाँगे के ऊपर लटके लालटेन की हल्की रोशनी में ये नज़ारा देख कर टाँगेवाले को सही इशारा मिल गया। वो बोला, “मेमसाब! कभी मौका देकर तो देखिये हमारे घोड़े को… सवारी करके आपका दिल खुश हो जायेगा! पूरा मज़ा ना आये तो नाम बदल दूँगा!”
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